दिया तले अंधेरा… यह कहावत पिछले 13 साल से प्रदेश को रोशन करने वाले छबड़ा के 10 गांवों पर सटीक बैठती है। प्रदेश को बिजली में आत्मनिर्भर बनाने के लिए वर्ष 2009 सुपर क्रिटिकल तकनीकी आधारित छबड़ा तापीय विद्युत गृह का शिलान्यास हुआ था। अब यहां 2 प्लांट में 6 इकाइयां हैं, जो रोज करीब 500 लाख यूनिट बिजली उत्पादन कर रही हैं। लेकिन इससे रोजाना निकलने वाली 8500 टन राख ग्रामीणों को सांस – स्किन एलर्जी की बीमारियां दे रही है। हकीकत जानने भास्कर मौके पर पहुंचा तो चौंकाने वाली बातें सामने आईं। छबड़ा पावर प्लांट और सपरकिटिकल थर्मल पावर प्लांट तीतरखेडी भटखेडी
मवासा, चौकी, अकोदियापार, अरनियापार, सेवरखेड़ी, मोतीपुरा, हनुमतखेड़ापार व अमानपुरा की जमीन पर बने हैं।
प्लांट ने 10 साल में 33 करोड़ सीएसआर फंड में दिए। लेकिन इन गांवों में सिर्फ 2.54 करोड़ यानी 7.6% ही खर्च हुए। बाकी फंड का इस्तेमाल सांसद और विधायक ने बारां के अन्य स्थानों पर किया। स्थिति ये है कि गांवों में सड़कें तक नहीं हैं। दो साल में 4 हजार मरीज सामने आ चुके हैं। छबड़ा विधायक प्रतापसिंह सिंघवी का कहना है कि फंड कहां खर्च किया बताया ही नहीं । बीमारियों, खेत खराब होने व डवलपमेंट का मुद्दा कई बार विधानसभा में उठाया। सरकार को पत्र भी लिखे। कलेक्टर नरेंद्र गुप्ता का कहना है कि सीएसआर फंड का खर्च कमेटी करती है। सीएसआर फंड कहां खर्च करना है यह सांसद, विधायक और कलेक्टर की कमेटी ही तय करती है।
सेहत… अस्थमा- स्किन के 4389 मरीज, फसल…80% फसल
खराब छबड़ा सरकारी अस्पताल व थर्मल प्लांट के पास स्थित डिस्पेंसरी में अस्थमा, एलर्जी व स्किन डिजीज के हजारों मामले सामने रहे हैं। दो साल में 4 हजार 389 मरीज अस्पताल पहुंचे। लोकल डिस्पेंसरी में भी 2000 से ज्यादा मरीज पहुंचे। बटखेड़ी गांव के राधेश्याम ने बताया कि राख उड़ कर फसलों पर आती है, जिससे हाथों पर खुजली हो गई। अब स्किन उतरने लगी है। गांव में 20 किसान परिवार इससे पीड़ित हैं।
तीतरखेड़ी गांव की सरपंच रेखाबाई का कहना है कि राख से जमीन बंजर हो रही है। 80% फसल खराब हो जाती है। सीएसआर फंड से विकास के लिए मंत्री-विधायकों को कई बार पत्र लिखे हैं। लेकिन किसी ने समस्या का समाधान नहीं किया।
नियम राख का 100% निस्तारण
पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार राख का 100 प्रतिशत उपयोग सुनिश्चित जरूरी है। इसका उपयोग ईंट, ब्लॉक टाइल, फाइबर सीमेंट शीट, पाइप, बोर्ड, पैनल विनिर्माण, सीमेंट, रेडी-मिक्स कंक्रीट, सड़क निर्माण सहित अन्य कार्यों में किया जा सकता है। वरना पर्यावरणीय प्रतिकर लगाया जाएगा।
… और आधी राख नहीं उठ रही
थर्मल प्लांट के चीफ इंजीनियर वीके वाजपेयी का कहना है कि
रोज 13 हजार टन कोयला लगता है, जिससे 35% राख निकलती
है। राख लेने इतने लोग नहीं आ रहे। तत्कालीन चीफ इंजीनियर
उमेश गोयल का कहना है कि 4 हजार टन राख निकलती है, 2
हजार टन लोग ले जाते हैं। बची राख पॉन्ड में डालते हैं। रेलवे से
हजार टन लोग ले जाते हैं। बची राख पॉन्ड में डालते हैं। रेलवे से ट्रांसपोर्टेशन के लिए प्रपोजल भेजा है। 800 करोड़ का एफजीडी भी बना रहे हैं।